कोरोना की दस्तक
कोरोना की दस्तक रोजमर्रा के काम काज और आफिस जाने की तैयारी की व्यस्तता में मुझे काफी देर बाद पता चलता है कि पूरे वातावरण में सन्नाटा छा गया है | सब कुछ रुक सा गया है स्त्ब्ध सा न पछियो की आवाज़, न ही पत्तों की सरसराहट ,न ही झीगुरों की झिनकार फिर धीरे सी हलकी हवा जैसे पेड़ों पर आ लगी उसके चलने के बोझ से डरे हुए फूल और पत्ते जो किसी अनहोनी के होने का आभास कर के बैठे हो ।धीरे – धीरे हवा के बोझ से झुक कर हिलने लगे है|मुझे भी हवा के मंद मंद झोके का का बोझ महसूस होने लगता है| अजीब बेचैनी से भर कर मै घर की गैलरी पर आ जाता हूँ।जहाँ से हर दिशाओ मै होने वाली हरकतों के देखा जा सके | कुछ देर बाद दूर उत्तर - पश्चिम में इस बेचैनी का कारण दिखाई देता घनघोर घटा जो रह रह कर चमक उठती है। सुबह का वो हल्का सुनहरा फिर नीला हुये आकाश में बादलों की अजीब अजीब शक्लें बनने बिगड़ने लगती हैं| लेकिन ये नीला आकाश देर तक नीला स्थिर नहीं रह पाया घटाओं ने उसे चारो ओर से घेर लिया हैं| दिन की उजास पर अंधियारा छा गया| मै भाग कर घर की खिड़किया बंद करता हूं|अगर कपड़ों को लपक कर ना उठाये तो ये सारे के...