कोरोना की दस्तक


कोरोना की दस्तक 




रोजमर्रा के काम काज और आफिस जाने की तैयारी की व्यस्तता में मुझे काफी देर बाद पता चलता है कि पूरे वातावरण में सन्नाटा छा गया है | सब कुछ रुक सा गया है स्त्ब्ध सा न पछियो की आवाज़, न ही पत्तों की सरसराहट ,न ही झीगुरों की झिनकार फिर धीरे सी हलकी हवा जैसे पेड़ों पर आ लगी उसके चलने के बोझ से डरे हुए फूल और पत्ते जो किसी अनहोनी के होने का आभास कर के बैठे हो ।धीरे – धीरे हवा के बोझ  से झुक कर हिलने लगे है|मुझे भी हवा के मंद मंद झोके का का बोझ महसूस होने लगता है| अजीब बेचैनी से भर कर मै घर की गैलरी पर आ जाता हूँ।जहाँ से हर दिशाओ मै होने वाली हरकतों के देखा जा सके | कुछ देर बाद दूर उत्तर - पश्चिम में इस बेचैनी का कारण दिखाई देता घनघोर घटा जो रह रह कर चमक उठती है। सुबह का वो हल्का सुनहरा फिर नीला हुये आकाश में बादलों की अजीब अजीब शक्लें बनने बिगड़ने लगती हैं| लेकिन ये नीला आकाश देर तक नीला स्थिर नहीं रह पाया घटाओं ने उसे चारो ओर से घेर लिया हैं| दिन की उजास पर अंधियारा छा गया| मै भाग कर घर की खिड़किया बंद करता हूं|अगर कपड़ों को लपक कर ना उठाये तो ये सारे के  सारे पडोसी के यहाँ नज़र आयेगे।और दूसरी चीजें समेटता हूँ| तूफान और बादल छाने से डर सा लगने लगा है| बहुत दूर बिजली की कड़क और गडगडाहट शुरू हो जाती है | तूफान की शुरुआत बड़ी बूंदों से हुयी जो आसमान से गिरकर धुल में सिमटने लगी ।घर के फर्श पर  जलतरंग सा बजने लगा  पत्तियाँ  पानी मै भीग कर झूम उठी। सभी पेड़ो की पत्तियाँ और सड़के एसे चमक रही जैसे नयी पोशाक पहन ली हो | फिर झड़ी लग गयी मुसलाधार बारिश होने लगी और बारिश इतनी तेज़ की एक्का दुक्का बुँदे खिड़की दरवाजो से अन्दर आने को बेचैन होने लगी मानो वे भी कह रही हमे इस तूफ़ान में अन्दर बुला लो| आकाश में बिजली की चमक रह – रह कर इतनी तेज़ हो रही मानो देवलोक से कोई किसी अनहोनी को लेकर कोई चेतावनी देना चाह रहा हो | इस मौसम मै जब बिजली की कड कडाहट ऐसी हो की रोंगटे खड़े हो जाये । तब बाहर रहना या किसी भी लोहे के चीज के पास होना खतरे से खाली नही । पर मै यह द्रश्य देखने से अपने आप को रोक नही पा रहा था | खिड़कियां भी बादलों की गडगडाहट से झन -झना उठी | सड़क किनारे कुत्ते के छोटे बच्चे भी अपनी माँ के साथ दुम दबाकर छुपने की जगह ढूंढ़ने  लगे |बिजलियों की वज्रपात की कड़कड़ाहट फिर गूंजी।इस बार कहीं और भी.. नजदीक। रोंगटे खड़े हो गए! बरसात और प्रचंड हो उठी। तूफानी झोंकों के कारण तेज झकोरे लेती अंधड़ और बारिश  दोनों ने पेड़ों को धुन डाला है। घास धरती पर  लोटं सी गई है। छत और टीन के बने परनालों से पानी के तेज धारे फूट पड़ी हैं। खिड़की के शीशों पर बहते पानी के कारण बाहर का कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा है। मैं चकित हूं, आकाश से इतना सारा पानी इतनी तेजी से कैसे गिर सकता है| बादलों ने इतना बोझ कैसे झेल रखा था| मै रह -रह कर घर की एक एक खिड़की और पोर्च के सामने जाता हू  और अचरज में पड़ जाता हूं  कि यह सब होता कैसे है? पौधे कैसे झुके झूम रहे हैं! सीढ़ीदार रास्तों (गड्डे वाले रास्ते )की जगह अब नए नए कल कल करते झरने बह रहे हैं|  बारिश के साथ साथ अब छत पर ओलों की  तड़तड़ाहट भी सुनाई पड़ने लगी |
सफेद ओले हरी घास पर उछल - उछल पड़ते थे ,ऐसा लग रहा था मानो अटखेलिया कर रहे हो | कुछ' चमचमाते ओले उछल-उछल कर कीचड़ में जा धंसे| और कुछ को मैंने मुँह में दबा लिया |अब अंधड़ बीत चला है| वातावरण में अब एक अलग तरह की स्तब्धता छा गयी अब सब कुछ  ऐसा लग रहा जैसे अभी अभी-अभी नींद से जगा हो तरो ताज़ा महसूस हो रहा था | मै भी कमरे से बाहर निकल आता हूं, छत पर खड़ा हूं फिर भी थोड़ी ही देर में बौछार से भीग जाता हूं, तो भी बहुत अच्छा लग रहा है- सब कछ ठंडा-ठंडा और भला -भला | मैंने ने लंबी सांस खींची मानों बाहर की शीतलता अपने अंदर समेंट लेना चाहता हूँ | फटते बादलों के बीच सूरज की लुका – छुपी का दश्य कितना मोहक है। एक किरण छत के एक कोने में अटकों बूँद पर पड़ी  सतरंगी आभा जगमगा उठी|  बस, कुछ ही क्षणों में मैं मेरे पोर्च के सामने बिछी गीली घास पर चल सकूंगा |  थोड़ी देर पहले गली में मटियाले पानी की जो छोटी-छोटी झीलें सी बन गई थीं | अब वे धीरे - धीरे धरती में समाने लगी हैं| इस अंधड़ को झेलने बाद भी बाग कितना खूबसूरत और अनछुआ सा लग रहा है |  पेड़ों के कुछ पत्ते भी झड़े है ,और घास की एक-एक पत्ती धुल कर चमक उठी है|  आज हवा कितनी स्वच्छ और मादक लग रही है | धरती की तरह मैं भी अपने को बिलकुल नया और पुलकित अनुभव कर रहा हूं । जैसे मेरा अतःकरण तक धुल कर स्वच्छ निर्मल हो गया हो|  मुझे लगता है, एक अनूठी शांति मुझ में रच बस गई है--अंधड़ की स्निग्ध गरिमा से पगी दिव्य शांति| इसी खुशनुमा एहसास और हलकी -हलकी बारिश की बूंदों को लिए हुए मै ऑफिस सकुशल पहुच जाता हू | पहुँचते ही बिजलियों की वज्रपात की कड़कड़ाहट फिर गूंजी | फिर झड़ी लग गयी मुसलाधार बारिश होने लगी और बारिश इतनी तेज़ की आसपास सिर्फ पानी ही पानी जिसे जहां  जगह मिली वो वहाँ छुप गया | कुछ देर बाद फिर वही  स्तब्धता छा गयी | ऑफिस के सारे लोग धीरे- धीरे ऑफिस पहुँचने लगे जो बारिश से बच पाये | ये दिन इस तरह गुजर गया | अगले नए दिन की शुरुआत भी अच्छी रही रोज की तरह ऑफिस पहुँच गए। सभी अपने –अपने काम में लगे  कुछ कर्मचारी आपस मे गुफ्तगू कर रहे छुट्टी को लेकर, की कल से छुट्टी ले या जब बड़े साहब दे तब से| आखिर किस बात को लेकर इतनी बैचेनी थी| तभी थोड़ी देर बाद बड़े साहब की दस्तक सभी अपनी अपनी डेस्क पर थे, तभी सभी को बुलाया जाता है उस अनजाने डर को लेकर सजग रहने के लिए कहा जाता है जो चारो और व्याप्त हो चुका है और बोला गया की शायद कल से आप लोगो को घर से काम करना हो , बस इतना कह के बात खत्म | और शायद डर जायज़ था जिसको लेकर पुरे विश्व मै भय का माहोल था | मुझे भी कुछ आभास होने लगा था जैसे एक दिन पहले होने वाली बारिश के इशारे से प्रकृति भी देवलोक से वही चेतावनी दे रही थी | उस डर उस भय का | अब उसका पदार्पण हमारे अपने शहर मै हो चुका था | उस डर को अब आप बखूबी जानते है उसका नाम है “कोरोनावायरस (COVID-19) “




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